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* लड़की *

" आत्मसात " (सही और सत्य बात)
" आत्मसात " (सही और सत्य बात)
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* लड़की *

लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है ,
तेरा जन्मना अभिशाप नहीं
तू ही तो गृहणी है।
तू है दूर्गा तू है काली
तू ही लक्ष्मी तू हीं सरस्वती ,
तू महामाया सब तेरी माया
सम्पूर्ण जगत में तु ही छाया ,
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।
तू ही इष्ट तू हीं नूर
तुझ से कोई नहीं रह सकता दूर ,
तू ही शुन्य तेरे बिना सब सून
दायें बैठे मान बढ़ाए बाएँ बैठे मान घटाए ,
अच्छे-अच्छो को धुल चटाए
तेरी नीति कोई समझ नहीं पाए ।
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।
हर कामयाबी में तेरा हाथ
तेरे बैगर न पुरूष का पुरूषार्थ,
तू अमिना तू हीं मरियम
तू हीं सिता गीता और सबिता।
नरेन्द्र इनका क्या करे बखान
पढ़ लो इनका इतिहास ,
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।
सभी पुरूषों को तूने जन्म दिया
इस सृष्टी को
सभ्यता संस्कृती और कर्म दिया ,
गम्भीरता सहनशीलता है तेरा गुण
इस लिए लोग करते हैं
तेरे साथ भूल ,
प्रेम करूणा का सागर है तू
सभी गुणों में आगर है तू ,
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।

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